Wednesday, January 11, 2012

उसके नाप की जॅकेट


मैने कही दो लाइने पढ़ी आकांक्षा अनंत सिंह जी की ....मुझे अच्छी लगी...मैने उसे गति दे दी...

वो बुनता हैं खीझ
मैं बुनती हूँ स्वेटर
आज कल शाम अच्छी गुजरती हैं….

उसकी उन खीझो से
नये डिज़ाइन उभर आते हैं
नये नये रंग दिमाग़ मे आ जाते हैं….
जितना ज़्यादा आता हैं उसको गुस्सा
उतना ही तेज़ी से
मेरा स्वेटर पूरा होता जाता हैं
अब नही रहता मॅन मे कोई खेद
क्यूँ करता हैं वो बात बात मे रोष?
शायद जमाने भर का गुबार
दिल मे ले आता हैं
मेरे सामने आते ही
उसका गुबार बाहर आ जाता हैं
चलो अच्छा है कम से कम
दुनिया मे तो नही लड़ता
मुझे ही अपनी डस्टबिन
हैं समझता…
मैं भी लेती हूँ उसके गुबार को
सकारतमक तरीके......
अब जब भी दिखे आपको
मेरे हाथ मे कोई नया स्वेटर
आप समझ जाना…..उसने अपनी खीझ
हम पे उतारी हैं..........
और मैने उसी के नाप की जॅकेट बुन डाली हैं….

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