तुम्हारी छैनी-हथोड़ी ने इधर तराशा, उधर तराशा....तुम जैसा चाहते थे वैसा ना बन सका...क्या करुं ऐसा ही हूं मैं...
इसमे तुम्हारी क्या ग़लती हैं?
छैनी-हथोड़ी से समान बना करते हैं
ना की इंसान....
तुम तो इंसान हो..
तुम्हारे अंदर कुछ भावनाए हैं
ज़ज्बात हैं, एहसास हैं
प्यार हैं प्यार की भावनाए हैं
तुम को तो सिर्फ़ सँवारा जा सकता हैं
अंदर के गुनो को उबारा जा सकता हैं
तुम्हारे ख़यालो को ......
और भी निखारा जा सकता हैं
लेकिन जब तक तुम ना चाहो तुम्हे
अपने जैसा नही बनाया जा सकता
अपना रूप नही दिया जा सकता
और जिस दिन तुमने चाह लिया
मेरी तरह बन ना...
किसी बाहरी आडंबर की ज़रूरत नही रहेगी
लोग तुम्हे देख कर ही जान जाएगे
क्यूंकी वो तुम मे मेरा ही प्रति रूप पाएँगे
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