सर्दी की धूप और उस पर
तुम्हारा मिलना
जैसे धूप का मोतियो के जैसे
खुश होकर खिलना
वो भी बरसो बाद
मन जैसे भर गया हो खुशियो से....
ज़ुबान को लग गया हो ताला,
आँखो को वर्षा की झड़ी
जो रुकने का नाम ही नही ले रही हो
कुछ पल की मुलाकात ने ही
सब कुछ बदल डाला था
सूखी बगिया मे बहार का मौसम
नज़र आया था..
रोशनी के शहर ने सब कुछ दिया था..
लेकिन हमसे तुमको छीन लिया था..
मुलाकात बहुत छोटी थी..
मैं भी ज़्यादा नही पूछ पाया
कैसी हो "तुम"
क्यूंकी जब मैं नही था पहले जैसा
तो तुम कैसे हो सकती थी
अच्छी "मेरे बिना"
पीपल के नीचे की गई सब बाते
आज भी याद थी मूहजुबानी......
लेकिन बढ़ गई थी जिंदगी की उलझने
पहले से बहुत ज़्यादा......
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