गगन टेसू की रक्तिमाभा से विभोर था-
गगन ने किया था प्यार धरती से
वो उसके ही प्यार से सराबोर था
जा रहा था मिलने अपने प्रियतम से
मॅन मे कुछ शोर था...............
घूमड़ रहे थे विचार मॅन मे तरह तरह के
कैसे मिलूँगा, क्या कहूँगा, कही शर्मा ना जाए प्रियतम मेरा
सोच सोच के परेशान हुआ जा रहा था......
बस दिल था उसका कि धाड़ धाड़ धड़के जा रहा था.........
एक तरफ़ा सोच थी उसकी......
उसे कुछ समझ नही आ रहा था.......
तभी सामने आ गई धरती उसके
जो कहना था सब गया भूल
आई इतनी शर्म उसे की...
वो टेसू की रक्तिम आभा से लाल हो गया...
वो उसके ही प्यार से सराबोर था
जा रहा था मिलने अपने प्रियतम से
मॅन मे कुछ शोर था...............
घूमड़ रहे थे विचार मॅन मे तरह तरह के
कैसे मिलूँगा, क्या कहूँगा, कही शर्मा ना जाए प्रियतम मेरा
सोच सोच के परेशान हुआ जा रहा था......
बस दिल था उसका कि धाड़ धाड़ धड़के जा रहा था.........
एक तरफ़ा सोच थी उसकी......
उसे कुछ समझ नही आ रहा था.......
तभी सामने आ गई धरती उसके
जो कहना था सब गया भूल
आई इतनी शर्म उसे की...
वो टेसू की रक्तिम आभा से लाल हो गया...
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