Wednesday, April 25, 2012

लम्हो मे गुज़रे पॅलो का ज़िक्र
तुम्हारे बिना कैसे आ सकता हैं
पैरो के छाले..जो दिए जंगल ने
उन्हे कौन सहला सकता हैं?
तूफान भी संभाल नही सकता
नन्हा सा दिया...जो मिल कर
जलाया था कभी..............
आओ तो हाथ लगाए
मिल कर दिए को बचाए.....
कुछ तुम्हारी ......
कुछ अपनी सुनाए.....
मिल कर फिर से.....
नया स्वप्न महल बनाए..

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