देह की आँच पे सिकता एक रिश्ता
देह की आँच पे सिकता एक रिश्ता
कभी नही ले पाता आकार...........
तृप्त कर अपनी आत्मा..
पुरुष मे शेष रह जाता
सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना अहंकार....
नही जानता ...क्या चाहिए उस
कोमल हृदय को..
क्यूँ राह तकती हैं तुम्हारी
क्यूँ सहती हैं उपेक्षा.......
नही रखती कोई भी अपेक्षा...
रख कर कंधे पे पुरुष के परिवार का बोझ
बस आगे बढ़ती जाती हैं...
बिना बोले बिना कहे........
अपना फर्ज़ निभाती हैं...
गर कभी मुख भी खोला तो पता हैं..
सिल दिया जाएगा.....
दी जाएगी ऐसी यातनाए...............
वो उफ्फ भी ना कर पाएगी...........
मिला हो उसे जीवन मे प्यार
या
धिककार पता हैं...खामोश रहना हैं..
वरना बाहर आ जाएँगे....कमरे के सारे भेद...
जिनके साथ उसे उम्र भर रहना हैं...
कभी नही ले पाता आकार...........
तृप्त कर अपनी आत्मा..
पुरुष मे शेष रह जाता
सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना अहंकार....
नही जानता ...क्या चाहिए उस
कोमल हृदय को..
क्यूँ राह तकती हैं तुम्हारी
क्यूँ सहती हैं उपेक्षा.......
नही रखती कोई भी अपेक्षा...
रख कर कंधे पे पुरुष के परिवार का बोझ
बस आगे बढ़ती जाती हैं...
बिना बोले बिना कहे........
अपना फर्ज़ निभाती हैं...
गर कभी मुख भी खोला तो पता हैं..
सिल दिया जाएगा.....
दी जाएगी ऐसी यातनाए...............
वो उफ्फ भी ना कर पाएगी...........
मिला हो उसे जीवन मे प्यार
या
धिककार पता हैं...खामोश रहना हैं..
वरना बाहर आ जाएँगे....कमरे के सारे भेद...
जिनके साथ उसे उम्र भर रहना हैं...
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