बदला हुआ बेटा
ताउम्र मरती है
माँ
बहने
बेटे और भाई
के लिए
फिर भी
कुछ नहीं कर पाती
पत्नी दो दिन में
घर की तस्वीर
बदल देती है
जिस बेटे ने
कभी मुह न खोला हो
पिता के आगे
उगल देता है
फटाफट कैसे
पत्नियों फिर
भोली सी बन जाती है
आप का बेटा है
आप जाने
कह कर आसानी से
छूट जाती है
चढ़ती रहती है
दिन भर
बुराई की पट्टी
उनका भी भाई है
ये क्यों भूल जाती है
देकर माँ को दुःख
क्या कोई बेटा
कभी सुख पाया है
माँ के पैरों के नीचे
स्वर्ग है बचपन से
सुनता आया है
सारे खयालात
दो दिन में गुम हुए
जाते है
बेटे यु बदल जायेंगे
माँ बाप तो सोच भी नहीं
पाते है
बेटी के हिस्से का भी
बचाकर बेटे को दिया
बदले में बेटा
किसी और का हुआ
मैं कहती हूँ
छोड़ो अन्तर
बेटी और बेटे का
अब तो आँख खोलो
देखो अन्तर्दृष्टि से
दोनों ही है
कलेजे के टुकड़े
अब यही सोच रखो
पढ़ाओ बेटी को
दुनिया से लड़ने का
हौसला रखो........
(Jindagi channel dekhte hue upje kuch vichaar)
12 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2016) को "प्रवर बन्धु नमस्ते! बनाओ मन को कोमल" (चर्चा अंक-2266) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
बेटी को अपने पाँव पे खड़ा होना चाहिए और इसके लिए माता पिता को इसका ख्याल रखना चाहिए ...
सार्थक और उद्देश्य पूरक, सामाजिक सन्देश देती सुन्दर रचना ....
शुक्रिया ब्लाग की दुनिया पर सुन्दर प्रस्तुति के लिए .. :)
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....
अब यही सोच रखो
पढ़ाओ बेटी को
दुनिया से लड़ने का
हौसला रखो........
बहुत सुन्दर ..
भेदभाव से ही सारा झमेला खड़ा होता है ..
kavita rawat ji..shukriya apka rachna pasand karne ke liye
prasann vadan chaturvedi ji bahut bahut abhaar....apka
digambar naswa hi..shukriya apka
shanti garg ji.. jaroor ayenge apke blog par....shukriya sir
Roop chandra ji...abhaar apka rachna ko sanjha karne ke liye
anonymous..thanks
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