विश्वास
तुम तो मेरी रगों में
बहती हो
खून बनकर
वो कहता रहा
मैं सुनती गई
प्यार का सिलसिला
यू ही चलता रहा
वो निभाता गया
मैं बंधती रही
उसके विश्वास के छोर से
दिया एक वचन
न तोडूंगा रिश्ता
चाहे आ जाये दीवारें कितनी
दूंगा साथ बुढ़ापे में भी
बनूँगा सदा मैं लाठी तेरी
वक़्त आया
चला वो हाथ छुड़ाकर
मजबूरी उसकी थी
स्वीकृति मेरी थी
छितिज के पार जाना था उसे
उम्र उसकी धरती पे पूरी हुई
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