आँखो का ख़याल आते ही
आँखो का ख़याल आते ही
ना जाने क्या हो जाता हैं मुझे
किसी ग़रीब की जर्द पीली आँखे दिखती हैं मुझे
जिसने बरसो से ढंग से खाना भी खाया हो..
कभी दिखती हैं शराबी की लाल सुर्ख आँखे
जो गम ग़लत करने के लिए पी आया हो कहीं से
कभी दिखती हैं किसी बेबस मज़बूर बाप की आँखे
जिसकी बेटी कवारी बैठी हो दहेज के लिए......
कभी दिखती हैं किसी बूढ़े माँ-बाप की आँखे
जिनका बेटा अधर मे छोड़ गया हो उनको..
अपनी महत्वकाँशा के लिए.........
कभी किसी प्रेमिका की आँखो मे झाँका मैने
तो उसे प्रियतम का इंतेज़ार करते पाया हैं
या फिर किसी रूपसी की दर्प से भरी आँखे
आँखे हैं की बिन बोले सब बयान कर देती हैं
गम मिले क्या खुशी जिंदगी मे.....
सब बखान कर देती हैं...
कैसे करू शुक्रिया इन आँखो का
ये तो बस ना करने वाला काम
भी कर देती हैं..
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