Monday, September 12, 2011

भीगी भीगी शाम


भीगी भीगी शाम ....अतीत का पन्ना
उसमे तुम्हारा उदास चेहरा
ना जाने क्यूँ मुझे बार बार 
याद आ रहा था
लगा की तुम कुछ 
कहना चाह रहे थे मुझसे
लेकिन कह नही पा रहे थे .....
शायद मुझे कुछ एहसास भी था की तुम
क्या कहना चाह रहे थे....
लेकिन मैं बहुत खुश थी उस वक़्त
मुझे कुछ सूझ नही रहा था...
बस दिख रहा था सामने एक लक्ष्य
आख़िर जीवन की परीक्षा का 
पहला इम्तीहान जो 
पास किया था मैने
मुझे लग रहा था मुझे अभी 
और और आसमान छूना हैं
सितारो से भी आगे जाना हैं..
मैं खुशी खुशी अपना समान 
बाँध रही थी...
क्यूंकी मुझे अगले दिन 
सुबह गाड़ी पकड़नी थी
जाकर नया जीवन जीना था....
चाह कर भी तुम कुछ
कह नही पा रहे थे 
और मैं जान कर भी अंजान 
होने का नाटक कर थी.......
अब मैं यहा आ चुकी थी.....
धीरे धीरे जीवन की रेल गाड़ी  ने भी
अपनी रफ़्तार पकड़ ली थी..............
सब कुछ मेरे मन मुताबिक 
व्यवस्थित हो चुका था
आज फिर मैं अकेले कुर्सी पे टिकी
अतीत के पन्ने पलट रही थी 
और उन पन्नो पे तुम्हारा अक्स 
रह रह कर उभर रहा था
अब जब मेरे पास सब था 
तुम नही थे..
बहुत दूर जा चुके थे...
सुखद कहानी का दुखद अंत
जो अभी ठीक से 
परवान भी ना चढ़ि थी...???????????????



    • Suman Mishra रेत पर भीगी भीगी शाम...DI...
      September 13 at 12:01pm ·  ·  1 person
    • Nitesh Kumar very nice...
      September 13 at 12:02pm ·  ·  1 person
    • Aparna Khare thanks suman for ur first lovely comment
      September 13 at 12:02pm · 
    • Aparna Khare thanks nitesh
      September 13 at 12:02pm ·  ·  1 person
    • Aankhe bheeg jaati hain, Dil bhi udaas ho jaata hai.... Jindgi ki kitab palate hue, jab koi sookha gulab nikal aata hai............ Aparna jiiii, sundar rachna.....
      September 13 at 12:09pm ·  ·  1 person
    • Aparna Khare thanks Sanjeev ji....
      September 13 at 12:14pm · 
    • Manoj Gupta साँझ ढलते ही
      तेज़ी से बंद कर लेते हो तुम
      अपने मन के कमरे के दरवाज़े
      फिर पलटते हो पन्ने
      सुनहरी यादों के
      और मैं ...........
      तुम्हारी सांसों संग बन समीर
      खिंच आती हूँ भीतर तक
      देखती हूँ कमरा ..........
      फैले हैं ढेरों पन्ने
      आत्मीयता के बिस्तरे पर
      और ..........
      करीब ही रक्खी है
      उम्मीद की मद्धिम लालटेन भी
      जिसकी हलकी रौशनी काफी है .............
      संजोने को हर सामान !
      September 13 at 12:28pm ·  ·  2 people
    • Aparna Khare waah manoj ji......sambhal lete hain khud ko..tumhari yado se
      September 13 at 12:29pm ·  ·  1 person
    • Manoj Kumar Bhattoa very nice................beautifull lines.
      September 13 at 12:29pm ·  ·  2 people
    • very nice aprarna ji ...............
      September 13 at 1:32pm ·  ·  2 people
    • Alam Khursheed आज फिर मैं अकेले कुर्सी पे टिकी
      अतीत के पन्ने पलट रही थी
      और उन पन्नो पे तुम्हारा अक्स
      रह रह कर उभर रहा था...............Waah Aparna Ji!
      Aap ke liye ek she'r:
      _____________________________________
      Hamen khabar hai kabhi laut kar n aayenge
      Gaye dinoN ko magar ham bulate rahte hain
      _____________________________________
      September 13 at 1:50pm ·  ·  2 people
    • Aparna Khare waah alam ji...kitna umda sher padha hain..shukriya
      September 13 at 2:12pm · 
    • Niranjana K Thakur nice !!!!
      September 13 at 3:30pm ·  ·  2 people
    • Aameen Khan wow!!!! atit ke panno ko aapne bakhubi palta hai.... aur pratek panne ka bakhuubi chitran kiya hai.
      September 13 at 4:09pm · 
    • Rajiv Jayaswal nice poem---- like it.
      September 13 at 4:47pm · 
    • प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल भीगी शाम ने मन भिगो गई ... सुंदर
      September 13 at 6:15pm ·  ·  1 person
    • किरण आर्य अब जब मेरे पास सब था
      तुम नही थे..
      बहुत दूर जा चुके थे...
      सुखद कहानी का दुखद अंत
      जो अभी ठीक से
      परवान भी ना चढ़ि थी........waaaaaaaaaaaah dost bahut umda, sahi kaha tumne sachcha pyar vahin hota hai jo man me apni amit chhap chod jaata hai.................
      September 13 at 8:59pm ·  ·  1 person
    • Kamlesh Kumar Shukla Morvlous ..Aparna ji..
      September 13 at 9:06pm · 
    • Shamim Farooqui Waah khoob.
      September 13 at 10:01pm · 
    • Ashish Khedikar Very Nice Aparna Ji...
      September 13 at 10:48pm · 
    • Meenu Kathuria मैं अकेले कुर्सी पे टिकी
      अतीत के पन्ने पलट रही थी
      और उन पन्नो पे तुम्हारा अक्स
      रह रह कर उभर रहा था.............wah bahut
      khoob surat ahsaas........ke saath aapki rachna....Aparna Khareji........
      September 13 at 10:58pm · 
    • Gopal Krishna Shukla जीवन की गादी चलती है... चलती चली जाती है.... रुकती नही... पर जब रुकती है... तब....?

      सुन्दर भावाव्यक्ति अपर्णा जी... बहुत खूब...
      September 14 at 12:03am · 
    • Maya Mrig अतीत के पन्‍नों में दर्ज रहेगा दर्द का इतिहास----
      September 14 at 7:37am · 
    • Ramesh Sharma बस दिख रहा था सामने एक लक्ष्य

      आख़िर जीवन की परीक्षा का

      पहला इम्तीहान जो

      पास किया था मैने..wahhhh
      September 14 at 11:03am · 
    • Rajani Bhardwaj लगा की तुम कुछ

      कहना चाह रहे थे मुझसे................ pr kh na ske tumse
      September 14 at 1:03pm · 


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