कैसा ये सिलसिला
कैसा ये सिलसिला
कैसा ये सफ़र हैं
ना चाह कर भी चलना.
मेरे हमसफ़र हैं
तू दूर हैं..बहुत दूर हैं....
नही पता......................... कब मिलेंगे?
खुदा को क्या मंज़ूर हैं?
फिर भी चाहते हैं कि
मरती नही हैं
दम तोड़ती नही हैं.....
बहुत सोचा मिल जाए
इन चाहतो से निजात
लेकिन खुशिया भी
ऐसी है कि
दूर तक दिखती
ही नही हैं
अनवरत चलते जा रहे हैं हम
भटक रहे हैं तुम्हारे बिना कदम
कही से तो आजा..अंधेरो मे थाम ले
मेरा हाथ....और प्यार से कहे
हम हैं न तेरे साथ...
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