कैसा ये प्यार हैं?
देते हो घुटन, भरते हो उलझन
तुम कैसा प्यार करते हो
ना जाने कौन कौन से
तीरो से हम पे वार करते हो?
भूल गये हम पुरानी बातें
जो अब तक तुमको याद हैं
मैने उन बातों को सहज ही
खुद से दूर किया ...........
तुम हो की अब भी
उन्ही नुकीले तीरो से
मेरा कल्याण करते हो
लाते हो कहाँ से इतनी बुद्धि?
रोज़ नये नये वार करते हो
देते हो अपने प्रेम की दुहाई
कहते हो सदियो से चला आया हैं
फिर तरह तरह का अविश्वास
तुम मे कहाँ से उपज़ आया हैं?
रहते हो हरदम कुपित हमसे
ये कैसा व्यवहार करते हो?
लाते हो ना जाने कहाँ से इतनी बुद्धि
जो ऐसे वार करते हो?
प्यार करो तो दिल से करो
दिमाग़ से बातों को क्यूँ
दो का चार करते हो
हो जाएँगे हम सच मे तुम्हारे
एक बार दिल से अपना कर देखो
क्यूँ प्यार का दिखावा, हर जगह
हर बार करते हो.....
करते हो हमारे प्यार पे शक इतना
क्यूँ नही थोड़ा सा एतबार करते हो
लाते हो कहा से इतनी बुद्धि?
जो हर बार नई तरह से
वार करते हो.................अपर्णा
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