Tuesday, May 29, 2012



जानती हूँ
मैने हर छोटी से
छोटी बात को
तुम्हारी सच माना हैं........
लेकिन जब तुम 
गये हमे छोड़ कर
तुम्हे भूलने मे लगा 
एक जमाना हैं
क्यूँ याद दिलाते हो 
फिर वही लम्हे
वही प्यारे मीठे 
भीगे सपने............
अब की बार यदि 
देख लिए तुम्हारे साथ
फिर से वही सपने..............
रह नही पाउगी.................
टूट गई अबकी तो 
किरच किरच होकर
शीशे की मानिंद 
बिखर जाउगी.........
नही बचेगा मुझमे 
कुछ समेटने लायक
जिंदा लाश से भी
बदतर हो जाउगी..
मत करना मेरे साथ 
कुछ ऐसा
वरना किसी के भी 
हाथ नही आउगी..
समझ रहे हो ना...........................
मेरी बात का मतलब........................

2 Comments:

At May 29, 2012 at 9:10 AM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना! आभार...!

 
At May 30, 2012 at 1:51 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

shukriya uncle..

 

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