मुझे तेरी बाते क्यूँ अच्छी लगे..
मुझे तेरी बाते क्यूँ अच्छी लगे..
जो कहे तू कुछ भी तो ...फूल से झरे..
तेरी आवाज़ कोयल सी प्यारी लगे......
क्या करू इस दिल दिल का...............
गर्म हवा भी......अब बदली बदली सी लगे..
तेरी महक अब भी सब जगह रहती हैं
गुज़रता हूँ जब उस गली से...झट से गले आ लगती हैं...
मुझसे बिछड़ कर खुश रहना...क्यूँ बनाते हो मुझसे ही बहाना...
पता हैं बेतरतीब हो गये हो तुम..चाहे मुझे कुछ बताना या ना बताना..
तुमसे मिल कर लौटेगा कौन..
हम तो खुद को तुमको दे आए..
ख़यालो मे हम हो आए वहाँ वहाँ......
जहाँ जाना था नामुमकिन तुम्हारे बिना..
आप खुद हैं विचारो के सागर..
हमने भी सीखा गहराना आपसे...
करते रहे इबादत हम उनकी तमाम उम्र
चल दिए वो हमे छोड़ कर...कैसे करू सब्र
कत्ल की बात सुन कर रोए होंगे वो ज़रूर...
करते रहे जो प्यार तमाम उम्र भर के आँखो मे सुरूर
करीब आओ ना शरमाओ..
मुझे तुमसे कुछ कहना हैं
सारी उम्र अब तुम्हारे
संग मुझे रहना हैं..
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