प्यार की परिणति
सर्दियो की सुबह
खिड़की जो खोली यादों की
ठंडे झोके की तरह
तुम आ गये घर के भीतर
हाथ मे उठाया जो कही का प्याला
सारी यादें भी गरमा गई..
याद आ गया तुम्हारे साथ बिताया
हर लम्हा..
जो आज भी आँखो मे ज्यूँ का त्यु हैं..
हम करते थे हर वो बात.......
जो नही बाँट सकते दुनिया मे किसी के भी साथ
होता था जब हाथो मे हाथ..पहरो बैठे रहते थे ..
तुम्हारी कही हर बात
आज भी अंकित हैं ....
मेरे मानस पटल पे..
तुम ही थे मेरे जीवन की वरीयता...
हमेशा हमेशा...वक़्त ने हमे मिलने ही नही दिया ..
तो क्या..आज भी तुम जिंदा हो..
मेरी यादों मे...सांसो मे..मेरे हर एक वादों मे....
मत समझना मैने तुम्हे जाने दिया...
खुद से जुदा कर दिया...सुना हैं..
प्यार कभी मरता नही....अमर हो जाता हैं....
गति पा जाता हैं ..रूह को सुकून दे जाता हैं.
हमारे प्यार की परिणति भी ऐसी ही हैं....
2 Comments:
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
Shukriya madan ji..
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