Premika Ya Biwi
कबीरा तुम तो बिगड़ गये...जैसे दूध दही के संग...
दिखती हरदम प्रेमिका, रहो चाहे किसी के संग...
एक प्रेमिका....बॅंक मे...एक रखो संग....
तभी रहोगे सुखी तब...बजेगा ढोल संग बॅंड
मथानी चले पानी मे..दही बचा ना दूध...
पत्नी भी घर से गई..प्रेमिका भी गई छूट
लस्सी के चक्कर मे माखन छूटा जाए..
घर मे बैठी बीवी को, क्यूँ रहे भूल भुलाए
आईने मे रहा होगा कोई खोट
नज़र तो तुम्हारी ऐसी नही..
जो निहारो किसी को तो
उसकी ऐसी तैसी मचे..
मूढ़ा मॅन ऐसा करे खाए घर मे मार
बाहर की तो मिले नही...घर की लगे आचार
घरवाली हुई पुरानी...बाहर सुन्दर नार
घरवाली को देख के..स्वाद बिगड़ हैं जाय
गहराई मे झाँका तो सच सामने आ जाए..
बच्चे घर और कपड़े..सा नज़र आ जाए..
बीवी लगे फिर तो प्यारी...बाहर क्यूँ मूह बाए
धन्यवाद जी..सच से दिया मिलवाय
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