बता दो हर किस्सा ए गम..
क़लम जो चलाई तुमने मनचाही इबारत लिख डाली..
तस्वीर जो उबरी दिल मे अपने रंग मे रंग डाली..
किया क्या तुमने? पूछा क्या कभी तस्वीर से तुमने...
क्या खवहिश थी उसकी..रंगने से पहले....
बता दो हर किस्सा ए गम..
कुछ तो करेंगे...ना लगा पाए मरहम तो..
मिल के साथ रो लेंगे..
कभी तो कहो..कभी तो सुनो..
अपना गम..हैं ये..मुझसे भी बाँटो..
मत बाँटो प्रसाद की तरह
लेकिन अपनो को तो दे सकते हो..
नही कम होगा बाँटने से तो क्या हुआ..
इसी बहाने किसी से अपनापन तो होगा....
उड़ा लो मज़ाक..बना दो किस्से
हम भी सुन लेंगे....रो लेंगे
लेकिन तुम्हे कुछ ना कहेंगे
नही मुस्कुरा सकते...
उसने मुझे रुलाया हैं बहुत
मारे खुशी के रो पड़ेंगे..
दी हैं खुश रहने की दुआ...
अपना गम बताया नही...
कैसे रहेंगे खुश..........
उनको समझ आया नही..
मेरे हँसने की शर्त ये हैं..तुम्हे भी खिलखिलाना होगा...
अपना हर गम मुझे भी बताना होगा...
बादल पार की कहानी लिखना मिल कर दोनो...अपनी निगाहो से
सुंदर नज़ारा नज़र आएगा..बताओगे जब ये किस्सा
हर कोई ठहर जाएगा..
तुम्हे आता हैं बहलाना मुझे सब पता हैं..
मुझे खुश करने को करते हो क्या क्या
मुझे सब पता हैं...
सबका अपना अपना सूत्र हैं..
कोई हँसाकर खुश होता हैं
कोई रुला कर...तो कोई चिढ़ा कर
हम नही सताते उसने मुझे रुलाया हैं..
आपको क्या पता कितना जख्म लगाया हैं..
लेकिन जब वो मरहम लगाएगा बहुत देर हो चुकी होगी....
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