Tuesday, October 30, 2012

तुमसे होकर गुजरा रास्ता..अब कहीं नही जाता..




कोई हैं जो लिख जाता हैं...मुझे भी नही पता वो कहाँ से आता हैं..

बदलती देह, बदलते रिश्ते सब फानी हैं..
हर सुबह लेते हैं नया आकार..
फिर रात की स्याही मे विलीन हो जाते हैं...
नही बचता कुछ भी...उसके सिवा..
सब वही तो जगह पाते हैं..

परिंदे तो सूरज ढलते ही लौट आएँगे...
अब सो जाओ तुम भी...वरना हम लोरी किसे सुनाएँगे..

दिल से बीमार ही कर पाते हैं प्यार...
दिमाग़ से स्वस्थ तो बस व्यापार किया करते हैं..
नही बनते किसी की राह का काँटा...
वो तो बस सच्चा प्यार किया करते हैं

बालमा डूबे और संग
तुम निहारो बाँट...
देखो अब तो गुजर गया..माघ, जेठ, बैसाख..

रजनी तो खिल उठी पाकर चाँदनी का साथ..
भोर हुई सूरज उगा...पहुची पी के पास

माँ की शीतल छाया मे..सारे गम खो जाते हैं..
नही रहती याद किसी की जब माँ को पा जाते हैं..

माता पिता के चरनो मे बसता हरदम स्वर्ग
पाना हैं तो पा लो तुम...

ग़ज़ल जैसे मुझे लगते हो तुम..
मेरे हर मिसरे मे बसते हो तुम..
नही जाती कोई राह बिन तुम्हारे...
मेरे वजूद का हिस्सा हो तूम..

कवि हर पहलू को छू आता हैं..
तभी तो वो कवि कहलाता हैं
सहलाता हैं हर एक हिस्सा हमारा
जो गम मे डूब के आता हैं..

छुपाया जो तुमने प्यार उबर आया हैं गम
तुम्हे प्यार की कसम...हटा लो अब ये भरम

तुमसे होकर गुजरा रास्ता..अब कहीं नही जाता..
अब बस अंधेरा ही बचा हैं...रोशनी का नामोनिशा जो तुम ले गये..

रिश्ता बुना रंग बिरंगी लछियो से
उस मे की हुस्न से कशीदाकारी
तुम्हे उम्दा कारीगर नही तो और क्या कहूँ?

2 Comments:

At October 30, 2012 at 10:21 PM , Anonymous Anonymous said...

This comment has been removed by the author.

 
At October 31, 2012 at 3:49 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

bahut umda

 

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