Saturday, June 15, 2013

वो ही तेरे दायरे से भाग निकला..


 
तुम्हारी सोच का दायरा इतना बड़ा निकला... 
कि वो ही तेरे दायरे से भाग निकला.. अपर्णा 
 
तुम सच बोलो...चाहे कितना भी नागवार लगे.. 
चुप तो मौत के भी हुआ जाता हैं..अपर्णा 
 
जड़ो से जुड़ कर ही पहचान हैं हमारी... 
शाखो पे तो केवल पत्ती, फल, फूल लगा करते हैं..अपर्णा 
 
मोहब्बत मे बड़े बड़े उजड़े हैं... 
बसा हुआ तो कोई एक भी ना मिला..अपर्णा 
 
वक़्त हैं अभी, घर को सेमेंट से मजबूत करो... 
डाल दो छत, हटा के छप्पर...इतना तो मेरे यार करो..अपर्णा 
 
राजीव भैया कितनो का हाथ थामोगे... 
कोई दिन तो ऐसा आए जब अपनी भी कॉपी जाचोगे.... 
 
सुनकर तेरी बात वो बहुत रोया.... 
समझते हो उसे गैर...अब तक...क्यूँ कर गोया..अपर्णा 
 

2 Comments:

At June 18, 2013 at 9:44 PM , Blogger Durga prasad mathur said...

तुम्हारी सोच को दायरा इतना बड़ा निकला,
कि वो ही तेरे दायरे से भाग निकला-अर्पणा
पंक्तियां अपने आप में बहुत कुछ कह रही हैं,
प्रथम समय आपका ब्लॉग देखा ,अच्छी रचनाएं हैं
आपको हाहिृक बधई !
chitranshsoul.blogspot.com

 
At June 20, 2013 at 12:31 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

mathur sir apka bahut bahut shukriya..ap mere blog pe aye aur use saraha....

 

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