Thursday, June 20, 2013

परिशिस्थ

पत्र के परिशिस्थ
यही रह गये थे शायद
जब पत्र तुम्हे भेजा था..
तभी मायने नही मिल पाए पत्रो को..
क्यूंकी पत्र ही अधूरा था..
फिर से भेजा हैं पूरा पत्र..
पढ़ कर खलिश मिट जाएगी..
एक बार फिर से तुम मे...
नई जान आ जाएगी...

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home