कहते हैं "पारा" टूट कर फिर एक हो जाता हैं..जैसे टूटा ही ना हो..
एक बार बचपन मे
मैने भी
घर से दुखी होकर
खा लिया था पारा
अपनी फिज़िक्स की
लॅब से चुरा कर
सोचा मर जाएँगे..
किसी को ना पता चलेगा...
दुनिया से दूर चले जाएँगे..
लेकिन वो मुआ
पारा भी बेवफा निकला
खा कर उसे .......
फिर भी मुझे
कुछ ना हुआ..
तब से पारे से
विश्वास सा उठ गया हैं...
वो बचपन की
बात सोच कर
अब भी बहुत
हँसी आती हैं..
आपकी पारे की बात
पढ़ी तो...
घूम गया वो
पुराना मंज़र.
( कक्षा नौ की एक घटना )
2 Comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 07/12/2013 को चलो मिलते हैं वहाँ .......( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 054)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
shukria Upasna Di..Rachna share karne ke liye..
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home