ख़तरे का निशान
जैसे नदिया ख़तरे के निशान से
उपर होती हैं
काश
ऐसे ही हमारा मन भी
ख़तरे का निशान भाप पाता
और
दुखो से
समय रहते
खुद को उपर कर पाता
हमे तो तब पता चलता हैं
जब हम दुखो के सैलाब मे
डूब चुके होते हैं
और बचने के सारे रास्ते
बंद हो चुके होते हैं
तब बच रहती हैं घोर चिंता
कैसे बचाए खुद को
कौन मिले मांझी
जो पकड़ाए हमे किनारा
ले चले उस पार
जहाँ ना हो दुखो का नामोनिशान
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home