Wednesday, June 6, 2018

निग़ाहें


कितना दर्द है
इन निगाहों में
जो लफ्जों से
बयां नही होता

ढूंढती है
बहुत तुम्हे
ये नजरें
इन्हें
तुम्हारे सिवा
कुछ भी सूझता

बेचैनियां है कि
बढ़ती जाती है
उम्मीद है कि
घटती जाती है

किसपे करूँ
एतबार
ए-दिल बता??
अपनी किस्मत पे
या अपनी मोहब्बत पे

अब तुम बिन और
रहा नही जाता!!!!
@अपर्णा खरे

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home