Wednesday, July 8, 2020

विश्वास


तुम तो मेरी रगों में 
बहती हो 
खून बनकर
वो कहता रहा
मैं सुनती गई
प्यार का सिलसिला
यू ही चलता रहा
वो निभाता गया
मैं बंधती रही
उसके विश्वास के छोर से

दिया एक वचन
न तोडूंगा रिश्ता
चाहे आ जाये दीवारें कितनी
दूंगा साथ बुढ़ापे में भी
बनूँगा सदा मैं लाठी तेरी

वक़्त आया
चला वो हाथ छुड़ाकर
मजबूरी उसकी थी
स्वीकृति मेरी थी

छितिज के पार जाना था उसे
उम्र उसकी धरती पे पूरी हुई

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