Thursday, July 23, 2020

सतरंगी रे


सतरंगी 
सुर्ख आसमान
तुम्हारी याद..😢

डूबता सूरज....
ठंडी हवा...
तुम्हारी बातें
सब आगोश में 
भर लेना चाहती हूँ...

लेकिन
शाख से 
टूटे पत्ते सी 
कमजोर पड़ चुकी मैं

समूचे पेड़ का भार
कैसे संभालूं??

तुम आओ तो कुछ बात बने!!!

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