हमारा परम मित्र
किसी ने मुझे फोन किया
नंबर. था नया..आवाज़ थी अनजानी
जब तक कयास लगाती ..
वो अपनी बात कह के जा चुका था..
लेकिन मन मे कई प्रशण
दहाड़े मार रहे थे
कौन था कौन था ?
की गुहार कर रहे थे
मन ने कहा ये कोई अनजाना
नही हो सकता..हैं कोई अपना
लेकिन पहचान छुपा रहा हैं
मुझसे शायद घबरा रहा हैं..
फिर जब बात हुई उससे नेट पे
तो उसने बताया.
हमने भी तब तक
अंदाज था लगाया
हमारा अंदाज़ ठीक था..
वो कोई नही हमारा ही रूप
हमारा परम मित्र था....
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