Friday, November 11, 2011


जिंदगी भी घर के पास वाली 
गली के जैसी होती हैं
दिन मे कितनी चहल पहल
रात मे खाली खाली होती हैं
जिंदगी के कुछ लम्हे
दिन की तरह चमकते हैं
लेकिन रात आते आते
अंधेरो से भर उठते हैं
लोगो की भीड़ से घिरे हम 
रात को अकेले हो उठते हैं
राते हमे तन्हा कर जाती हैं
खुद से लड़ने के लिए 
अकेला छोड़ जाती हैं
और उस तन्हाई मे हम ढूँढते हैं 
अपनो का साथ, उनका अपनापन,
उनकी बात, उनके एहसास
जब वो नही मिलते
तो हम बेचैन हो उठते हैं
खुद को परेशान कर देते हैं
रोते हैं उन्हे खोजते हैं??????????

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