Monday, October 31, 2011




क्यूँ आज लग रहा हैं 
कोई नही हमारा
सब हैं दुनिया मे स्वार्थ से जुड़े......
लेकिन मन हैं 
स्वीकार नही कर पा रहा
सच्चाई से दो चार नही हो पा रहा
नही हैं सच्चा... फिर भी 
सबका प्यार सच्चा लगता हैं
कभी कभी हर कोई अपना लगता हैं
लेकिन जब वक़्त आता है तो
पता चल जाता हैं.......
कौन हैं अपना कौन पराया
जिसके काम को कर दो 
वो कहे हमे अच्छा 
वरना खराब तो हम हैं ही
वही गैर का ज़रा सा काम कर दो 
तो ढेर सारी आशीष देता हैं
समझ नही आता कैसे निभाए रिश्तो को
अब तो कोई सगा नज़र नही आता
सबकी अपनी अपनी चाहते हैं,
हसरते हैं... हमसे जुड़ी उमीदें हैं
कैसे पूरा करे उनकी उमीदो को
क्यूंकी हमारी भी तो कुछ उमीदे हैं
खामोश रह कर सब सहना पड़ता हैं
किसी भी बात को बहस का 
मुद्दा ना बनाया जाए..........
जिंदगी को जैसे तैसे शांत रखा जाए
यही करना पड़ता हैं.....
जान के भी अंजान रहना पड़ता हैं

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