माना के मैं झूठ था ,,,,,,,,,,,
तुमने भी सच न कह कर,
अपराध नहीं किया,,,,,,,,
तुम्हारी नज़रो मे मैं
अपराधी हो भी नही सकती
तुम जो करते हो मुझे
दिल से प्यार
तो कैसे करोगे
मुझ पर कोई वार
मैने बहुत बार
दिल को टटोला था
तब जाकर कहीं
सच बोला था
मुझे पता था
नही दे सकूँगी दूर तक
तुम्हारा साथ
तो कैसे करती
तुम्हारे प्यार के साथ
विश्वासघात
मुझे सच बोलना ही था
तुम्हारे संग संग
मुझे अद्रश्य रूप से
चलना जो था..
साथ निभाना था...
भले दूर से ही सही...
आज भी कहती हूँ
तुम झूठ नही थे...
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