Friday, December 16, 2011


तुमने कहा था 
तुम्‍हारे कदमों के निशां ले आएंगे मुझे तुम तक....
तुम्‍हारे आने के भी निशां हैं, जाने के भी...


तुम तक कौनसे पहुंचते हैं, पता नहीं....
सीढ़िया एक ही होती हैं
उतरने और चढ़ने की....
बिज़ली का स्विच एक ही होता हैं
ऑन और ऑफ का.....
मेरे कदमो के निशा भी एक से ही हैं
तुम कुछ कदम बढ़ो तो सही
मैं तुम्हारा दामन थम लूँगा
कहीं नही भटकने दूँगा
एक बार आओ तो सही....
मेरा भरोसा बाधाओ तो सही..
वक़्त को आज भी तुम्हारी दरकार हैं
तुम घबराव नही.......
आज भी प्यार मे गर्मी हैं
सांसो मे तुम्हारी नर्मी हैं.....
बस तुम नही हो................
तुम्हारा इंतेज़ार हैं...............
हाँ तुमसे ही प्यार हैं...

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