डूबे इसलिए कि भरोसा कश्ती पर किया...
नदी पर भरोसा होता तो कुछ और बात होती..
होता भरोसा गर नदी पर तो
कश्ती की क्या ज़रूरत थी
पार हो जाते यू ही
पकड़ कर बाह साहिल की
किनारा भी मिल जाता
सहारा भी मिल जाता
रहते सूखे सूखे इस छोर से
उस छोर तक भी
पकड़ी हैं जो बाह कश्ती की
तो फिर वही करना
कहे कश्ती तुम्हे गर तो तुम
डूब भी मरना...
बचाने कोई ना आएगा
हाँ साहिल ज़रूर चिल्लाएगा
ये कर दिया तुमने
क्यूँ फेर ली नज़रे तुमने
वो तब भी तुम्हारा था
वो अब भी तुम्हारा हैं
नदी पर भरोसा होता तो कुछ और बात होती..
होता भरोसा गर नदी पर तो
कश्ती की क्या ज़रूरत थी
पार हो जाते यू ही
पकड़ कर बाह साहिल की
किनारा भी मिल जाता
सहारा भी मिल जाता
रहते सूखे सूखे इस छोर से
उस छोर तक भी
पकड़ी हैं जो बाह कश्ती की
तो फिर वही करना
कहे कश्ती तुम्हे गर तो तुम
डूब भी मरना...
बचाने कोई ना आएगा
हाँ साहिल ज़रूर चिल्लाएगा
ये कर दिया तुमने
क्यूँ फेर ली नज़रे तुमने
वो तब भी तुम्हारा था
वो अब भी तुम्हारा हैं
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