Sunday, February 26, 2012

माना मेरा नशा हैं शराब से ज़्यादा..............


अलमारी के लाकर मे 
मेरे ख़यालो को महफूज़ रखता हैं
तू कहीं भी रहे...आँखो मे मेरी तस्वीर रखता हैं
जमाने की खातिर..या अपनी खातिर खुद को महफूज़ रखता हैं
लेकिन क्या तब भी मेरी याद नही सताती..
क्या मैं तेरे ख़यालो मे नही आती
तू कर ले चाहे कितने बहाने....
घुमा फिरा कर चाहे 

कितनी भी मेरी बातें
मैं तो रहना चाहती हूँ तेरे दिल मे
तू क्यूँ मुझे मशहूर करता हैं........
और अपने आप से ही मुझे दूर रखता हैं
तेरी ये अदा नही पसंद मुझे.....
चाहता हैं टूट कर और आँखो से दूर रखता हैं
माना मेरा नशा हैं 

शराब से ज़्यादा..............
मत पी शराब...

मगर मुझसे क्यूँ गुरेज़ करता हैं
प्यार करता हैं..

और जतलाने से डरता हैं...
इतना शूरवीर होकर

जमाने से डरता हैं

2 Comments:

At February 26, 2012 at 11:55 PM , Blogger suman.renu said...

bahdur,,,prem,,,,bahut sunder

 
At March 12, 2012 at 11:55 AM , Blogger अपर्णा खरे said...

thanks Suman

 

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