Wednesday, May 2, 2012

हमारे सपने कितने सुन्दर हैं .........
जो माचिस की डिब्बी जैसे घरों से
निकल भागते हैं.....
चाय कप जितनी छोटी
बालकनियो से झाकते हैं....
सैर कर आते हैं आसमान की
फैलाते हैं पंख उड़ जाते हैं
नही डरते आसमान कितना असीम हैं,
कितना फैला हैं, मेरे पँखो की सीमा कितनी हैं
लौट भी पाउगा या नही
खो तो नही जाउगा...मैं
बेखौफ़, अल्मस्त, सारी परेशानी को पीछे छोड़
हँसे हुए, मज़ा लेते हुए.......
जिंदगी से भरपूर........
यही हैं असली जिंदगी का नूर...

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