आपकी बात मुझे बीते हुए
समय की ओर ले जाती हैं
जब इतना गर्म मौसम नही था.....
नही चलती थी लू बातों की....
ना ही कहीं से धूप आती थी
प्यार का मौसम था...........
हर आपकी कही बात
सिर्फ़ उनके लिए हाँ थी..
करते थे इंतेज़ार आपके
कुछ कहने का...और...
दौड़ पड़ते थे आधी ही
बात सुनकर...पूरी करने को
आज ये कैसा मौसम आया हैं....
जो आपस मे चाकू, छुरी
तलवार निकल आया हैं....
छिड़ी हैं ऐसी कौन सी जंग..
जो मरने मारने का
मौसम आया हैं...
कट तो जाएगी
ऐसे भी और वैसे भी......
लेकिन क्यूँ इस तरह
अपना समय गवाया हैं.......
उनकी बात भी मत काटना..
अपनी भी मत काटने देना
बीच का कोई रास्ता निकाल कर....
मंज़िल पे आगे बढ़ते रहना..
सुन रहे हैं ना...प्यार की मंज़िल............
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