चलो उसे अपने पे विश्वास तो आया
वो किसी से प्यार करती हैं............
वरना अब तक तो पूछने पे मुकर जाती थी
सच को कभी लबो तक नही लाती थी
उलझे बालो मे लिपटे अपने ......
मॅन को नही सुलझा पाती थी...
काली घटाओ को देख उसका दिल
आशंकाओ से भर जाता था....
खामोश शामे भी उसे डराया ही करती थी..
बिस्तर की सिलवट भी उसे
प्रियतम की याद दिलाया करती थी..
बेचारी क्या करती ...............
खुद को इसीलिए मसरूफ़ किया..
ना कभी खुलकर अपने प्रिय का नाम लिया
उसे पता हैं ज़्यादा किसी ने उसे उधेड़ा
तो उसकी आँखो का समंदर सैलाब बन उतार आएगा....
जिसमे डूब जाएगी वो.........हमेशा के लिए
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