अब माँ नही आती...कमरे मे .....
देखो फिर आ गई सर्दिया..
लेकिन मुझे नही रहना इन सर्दियो मे
तुम्हारे बिना.....
मुझे नही ओढना
खुद से कंबल..........
जब तुम प्यार से
ओढाती हो मेरे उपर
मुझे अपना बचपन
याद आ जाता हैं
जब मैं रात को सोते सोते
खुल जाता था तो
माँ बार बार मेरा कंबल
ठीक किया करती थी
कभी कभी तो ठीक से
सो भी नही पाती थी बेचारी
वो एहसास .......अभी तक जिंदा हैं...
वो गर्माहट .......अभी तक हैं मेरे पास
वो स्पर्श ..........आज भी रोमांचित कर जाता हैं मुझे..
अब माँ नही आती...कमरे मे .....
बड़ा जो हो गया हूँ मैं..
शायद झिझकती होगी...
या फिर उसे पता हैं....
उसका बेटा अब नही ठिठुरता होगा सर्दी से..
बिना कंबल ओढ़े....माँ जो ठहरी मेरी....
खुद से कंबल..........
जब तुम प्यार से
ओढाती हो मेरे उपर
मुझे अपना बचपन
याद आ जाता हैं
जब मैं रात को सोते सोते
खुल जाता था तो
माँ बार बार मेरा कंबल
ठीक किया करती थी
कभी कभी तो ठीक से
सो भी नही पाती थी बेचारी
वो एहसास .......अभी तक जिंदा हैं...
वो गर्माहट .......अभी तक हैं मेरे पास
वो स्पर्श ..........आज भी रोमांचित कर जाता हैं मुझे..
अब माँ नही आती...कमरे मे .....
बड़ा जो हो गया हूँ मैं..
शायद झिझकती होगी...
या फिर उसे पता हैं....
उसका बेटा अब नही ठिठुरता होगा सर्दी से..
बिना कंबल ओढ़े....माँ जो ठहरी मेरी....
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