परिंदा था कहाँ रुक सकता था..लग जाती जंग परो मे जो ना उड़ता था..
परिंदा था कहाँ रुक सकता था..लग जाती जंग परो मे जो ना उड़ता था..
निकल गई दीवाली..
तुम होली मे ही पड़े हो..
लालो लाल क्या हुए..
सच मे अच्छे लग रहे हो..
मरने मारने की बाते ना किया करो...
बेतकलुफ होकर जिया करो..
शायरी हैं तो ईमोशन भी आएगा
वो शेर ही क्या जो ना रुलाएगा..
हालात से शिकस्त तो बुजदिल खाते हैं...
हम आप तो हर हालात से लड़ जाते हैं..
करते भी क्या जिस्म मे तुम्हारी रूह छोड़ कर
जिंदा कहाँ रह पाते तुम हमारे बगैर..
तुम्हारे चाहने वाले बताएँगे तुम्हारा हुनर या ऐब
तुम कहाँ देख पाओगे ये सब..खुद के भीतर
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