फकीर की बातें रंग लाई हैं...
तभी जमाने से की उसने रुसवाई हैं..
धागे जो खुले तो दर्द होना लाजिमी हैं,,
जन्मो का बँधा बंधन,,उसकी गाँठ कभी नही खुलनी हैं
सच कहा तुमने..कच्चा धागा ही उम्र भर साथ निभाता हैं..
पके हुए रिश्ते हो या फल, पेड़ से गिर जाया करते हैं फलो की मानिंद
तुम्हारी कदमो की आहट जानता हैं दिल..
हम कितना भी मोड़ें कदम..ठिठक जाते हैं वही..
मौसम सर्दी का हो या गर्मी..
हम हमेशा एक से रहे..
मिले भी तो अजनबी की तरह...
गये तो अपनो को भी मात किया..
तुम जो बदल गये तो बदल जाएगा जमाना..
तुम से ही तो रोशन हैं..मेरा ठिकाना..
क्यूँ की तुमने आरजू ए बात..
पहुच जाना था उसके घर होते ही रात
तुम मिले हो तो अब लगता हैं
जिंदगी इबादत के सिवा कुछ भी नही
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