गंगा नहाना भी तो ज़रूरी हैं...
हो गये हैं मौन हमेशा के लिए...
मना ली हैं एकादशी..
नही आएँगे लौट कर कभी......
अमरत्व की ऐसी दशा मिली..
घरवालो को उनसे
सदैव दूर रहने की..
आख़िर क्यूँ सज़ा मिली???
बताओ..अब क्यूँ हो तुम मौन???
मुवावजे से क्या होगा
लौट आएँगे अपने परिजन..या
एक लाख से कट जाएगी जिंदगी..
ज़िम्मेदार हैं तंत्र..या सरकार
या कहे खुद अपना मन
जो अमरत्व के लिए भटकता हैं..
नही देख पता काठौती मे गंगा..
गंगा की और भागता हैं..
आस्था का सवाल हैं.....
आस्था बहुत गहरी हैं...
नही कर सकता इस से जुदा
उन्हे कोई..क्या करते बेचारे
गंगा नहाना भी तो ज़रूरी हैं...
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