डरना कैसा मौत से...
मरना तो हैं एक दिन
बारिश हो या धूप हो...
पता नही जिंदगी
कितने दिन?
जमाने के साथ चल कर क्या करोगे...
वो तुम्हे हर बार पीछे छोड़ देगा..
तुम कितने भी लंबे डॅग भरोगे....
ऐसा ही हैं दुनिया का दस्तूर..
तेरे दिल पे हुकूमत कैसे कर लू...
तूने तो ना जाने कितनो को अपना मंत्री बनाया हैं..
तेरे मिट्टी के आँगन मे छिपा तेरा प्यार हैं..
सेमेंटी सी लिंक.......... हृदय रहित पुरुष सा खड़ा मुस्कुराता हैं..
अच्छा हैं ....मेरे किस्से
तुझे खनखनाते हैं, गुदगुदाते हैं
ये किस्से तो हम सिर्फ़
तेरे लिए ही बनाते हैं...
तुझे ही सुनाते हैं....चाहे कसम ले लो...
बहुत जोरो से बादल गरज रहे हैं...
लगता हैं आज आसमान सर पे उठाने का इरादा हैं...
2 Comments:
बहुत सुन्दर रचना!
shukriya uncle..
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