Saturday, February 9, 2013

नज़्म तुम्हारी हैं


नज़्म तुम्हारी हैं 
तुम्हारी ही रहेगी
चाहे तुम खुद 
नज़्म से पूछ लो 
नाम दो ... ना दो....
तुमसे ही सब कहेगी..
अपने कभी नाम के 
मोहताज़ नही होते..
जो नाम चाहते हैं...
वो अपने नही होते

सारे तीरथ कर डाले..
महा कुंभ भी हो आए..
खाना छोड़ दिया 
एक फल भी
जो था तुम्हे
बहुत पसंद
फिर भी मेरे मन को..
नही पढ़ पाए..

यादों की रियासत पे कौन कर सकता हैं कब्जा..
तुम्हारे सिवा यहाँ कोई नही बस सकता..

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