नज़्म तुम्हारी हैं
नज़्म तुम्हारी हैं
तुम्हारी ही रहेगी
चाहे तुम खुद
नज़्म से पूछ लो
नाम दो ... ना दो....
तुमसे ही सब कहेगी..
अपने कभी नाम के
मोहताज़ नही होते..
जो नाम चाहते हैं...
वो अपने नही होते
सारे तीरथ कर डाले..
महा कुंभ भी हो आए..
खाना छोड़ दिया
एक फल भी
जो था तुम्हे
बहुत पसंद
फिर भी मेरे मन को..
नही पढ़ पाए..
यादों की रियासत पे कौन कर सकता हैं कब्जा..
तुम्हारे सिवा यहाँ कोई नही बस सकता..
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