जिंदगी किताब ही हैं दोस्त
जिंदगी किताब ही हैं दोस्त
बस कुछ पन्ने तुमने बदल कर
दूसरे लगा दिए हैं
हरफ़ बदल दिए हैं..
नई सी कर दी हैं
किताब की जिल्द
लेकिन हर्फ बदलने से
क्या जिंदगी के मायने भी
बदल जाते हैं..
जो नही होता अपना..
क्या वो भी अपना हो जाता हैं?
नही ना...
तो पन्ने बदलने से क्या फायदा
जो जैसा उसे उसे वैसा ही रहने दो..
मत बदलो कुछ भी...
सब वैसा का वैसा रहने दो...
देखना जिंदगी खुद पलट कर
तुम्हारे पास आएगी...
मिटा देंगी तुम्हारे सारे गम..
बाग मे तेरे भी खुशिया
लहल़हाएँगी..
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home