दुनिया का सबसे खुशनसीब समझ लेती हूँ....
झूठ बोलती हूँ खुद से...
जिया करती हूँ तुझे
दिल की खुश दिल बस्ती मे
आ जाते हो बिना बताए..
शामो मे, रातों के लंबे पहर मे
बतियाते बतियाते भोर हो जाती हैं..
निकल पड़ता हैं नारंगी सूरज..
खोजने को तुम्हे..
पाकर मेरे पास वो तुमको
जल जाता हैं इतना...कि दिन भर
जी भर के जलाता हैं दुनिया को
की दुनिया फिर से ठंडी रातों की
खोज मे निकल पड़ती हैं..और मैं
तुम्हारे काँधे पे सर रख कर.....
खुद को दुनिया का सबसे
खुशनसीब समझ लेती हूँ.....
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home