Friday, March 1, 2013

ये तो मेरी आदत मे शुमार था...




हम पंछी एक डाल के 
साथ मे चाह चाहाएँगे
मिला ना गर कोई पेड़ दिल
तुम्हारे दिल मे आशियाना बनाएँगे

ज़रूर भीगेगा वो
जब भी मैं रो दूँगी..
मैं जानती हूँ..
मोम दिल हैं वो..
बनता हैं..बहुत शेर जो मेरे सामने..

हम सुनाते हैं सबको अपनी कहानी..
लोग रोते हैं समझ कर किस्सा अपना..
अब इसमे दोष मेरा हैं या उनका..
शायद कहानी ही मिलती जुलती हैं..हमसे..उनकी

तुम तो रीझ गये मेरी उस अदा पे..
जिसका मुझे गुमान भी ना था...
बालों को ठीक करना मेरी कोई अदा ना थी..
ये तो मेरी आदत मे शुमार था...

तुम गुज़रते हो हद से हम सह नही पाते..
तुम तड़पाते हो खुद को हम सह नही पाते..
क्या करे नादान दिल हैं हमारा..
ज़ुल्म सहने की आदत जो नही हैं..


मुझसे मेरी शिकायत
ये मेरा दिल सुन ना पाएगा..
रखोगे जो हाथ दिल पे अपने..
सब जान जाएगा..
कोई नही .........ये दिल ही हमारा 
जो आपके सीने मे धड़कता हैं..
आपका दिल बन कर 

तुम थे नादान उस हुस्न की तरह
जिसे पता नही था..कि वो कितनी खूबसूरत हैं..

वो मूरत कैसी होती हैं...
बिल्कुल मेरे मालिक जैसी होती हैं..
जो करता हैं प्यार सबको एक सा..
भूलकर भेद भाव...करता हैं अपना सा..

तुम्हे जलाने का मौसम आया हैं तो
मुझे भिगोने का मौसम भी आएगा..
क्यूँ सोचते हो तुम इतना मेरे बारे मे..
मेरा सब कुछ, मेरा ना रह पाएगा..
उठेगी जब बदलिया यादों की जहन मे..
झुलस कर मेरा दिल रह जाएगा..








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