खामोश दीवारो से तो पूछ लो एक बार मेरी तस्वीर का बोझ तो सह पाएँगी वो..
तुम्हारे साथ चल कर बहुत दूर निकल आए हैं..
अब और कही जाने की ज़रूरत ही नही..
सूखे फूलों को इंतेज़ार था..एक हवा के झोंके का..
अलग तो वो बहुत पहले ही हो चुकी थी....
खामोश दीवारो से तो पूछ लो एक बार
मेरी तस्वीर का बोझ तो सह पाएँगी वो..
आसमान को ज़िद हैं धरती पे आने की..
हमे ज़िद हैं..खुद को छिपाने की..
तुम्हारे पास तो बहुत कुछ हैं अभी भी..
उनकी तस्वीरे..कपड़े, किताबे और ना जाने क्या क्या..
उनकी सोचो जिनकी उजड़ गई हैं बस्तिया नामो निशा तक न बचा...
बरसात का नही हमारा ही दोष हैं..
काट दिए सारे पेड़..अब कहाँ रोक हैं..
बेच कर पेड़ सारे पैसे खा गये..
लेकिन यार हम तो मुसीबत मे आ गये..
2 Comments:
बहुत खूब
सुन्दर
shukriya Shivnath ji
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