एक याद
कहाँ गए वो दिन
जब शर्मा कर दुपट्टे से
मुह छिपा कर
भाग जाया करते थे
जरा सी तारीफ
गालों को गुलाबी
कर दिया करती थी
बात करते हुए
नजरे न मिलाना
अंगूठे से जमीन को कुरेदना
सब आज भी बहुत
याद आता है
चले भी आओ कि
आज भी दिल
तुम्हारे लिए ही
धड़क धड़क जाता है
वो मासूम सी आँखे
भोला सा चेहरा
शरबती बातें
सब तुम्हे ही बुलाता है
कैसे भूल जाऊ तुम्हारे साथ
बिताये दोपहरी के वो पल
जब कोयल की कूक से
सारा आलम महक जाता था.....
(एक याद जो दिल में छपी है तुम्हारी)
जब शर्मा कर दुपट्टे से
मुह छिपा कर
भाग जाया करते थे
जरा सी तारीफ
गालों को गुलाबी
कर दिया करती थी
बात करते हुए
नजरे न मिलाना
अंगूठे से जमीन को कुरेदना
सब आज भी बहुत
याद आता है
चले भी आओ कि
आज भी दिल
तुम्हारे लिए ही
धड़क धड़क जाता है
वो मासूम सी आँखे
भोला सा चेहरा
शरबती बातें
सब तुम्हे ही बुलाता है
कैसे भूल जाऊ तुम्हारे साथ
बिताये दोपहरी के वो पल
जब कोयल की कूक से
सारा आलम महक जाता था.....
(एक याद जो दिल में छपी है तुम्हारी)
4 Comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-06-2015) को "उलझे हुए शब्द-ज़रूरी तो नहीं" { चर्चा - 2004 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुंदर---बहुत कुछा कहा जा सकता है---परंतु अक्सर ना कह कर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है.
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार ,बधाई. कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
sundar abhivyakti .... :)
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