kitne pavitr ho tum
शाम का समय था
हल्की हल्की बूँदा बंदी हो रही थी
मौसम उदासीन था
या यू कह सकते हैं
मैं ही उदास थी
कुछ समझ नही आ रहा था
धड़कने थी कि बार बार मुझे
तुम्हारी ओर खीचे ले जा रही थी
यादों का काफिला
जैसे आज अपनी पूरी रवानी पर था
जबकि मैं थी की यादों की गिरप्त मे नही आना चाहती थी
यानी की तुमसे बहुत दूर जाना चाहती थी
तुम्हारा बेसबब याद आना...
इसका सीधा मतलब था
मुझे मुझसे ...बहुत दूर ....ले जाना
तुम्हारा व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था
मंत्र मुग्ध कर देने वाला
वैसे तो तुम बहुत कम बोलते थे
लेकिन जब बोलते थे तो लगता
जैसे सफेद फूलों से लदे पेड़ों से
सनडर खूबसूरत फूल एक साथ झड रहे हो
बिल्कुल झेनी बारिश की तरह
या यू कहो
बिल्कुल पवित्र तुम्हारी तरह
तुम्हारा बेबकीपन,
झट से सबको अपना बना लेने का स्वाभाव
जैसे ज़मीन पे अचानक बैठ कर
अम्मा के पैर दबाने लगना
अपने पुराने पुराने किससे सबको सुनना
बच्चो के साथ बच्चा बन जाना
ये ऐसे गुण थे की कोई तुम्हारे पास से
उठ कर ही ना जाना चाहता हो..
सच कितना अच्छा वक़्त था
जब हम साथ थे
सब साथ थे....
यादें नही तुम
तुम हमारे पास थे....
1 Comments:
यादों के झरोखों से सुंदर रचना.
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