प्रेम सूख गया है
जब बैठे हो सामने
टेबल पर
करने को
कोई बात न सूझे
समझो प्रेम सूख गया
हो हज़ारो बातें दिल में
बाँटने को
एक दूजे से
लेकिन मुख से
एक शब्द न फूटे
समझो प्रेम सूख गया
रहे एक ही घर में
एक ही कमरा हो
साथ रहने का
लेकिन फिर भी
मन अकड़ा रहे
दिल न पसीजे
समझो प्रेम रूठ गया
शीशे के सामने
खड़े होकर भी
खुद को
निहारने का मन न करे
कौन देखने वाला है
ये सोच कर
खुद को तैयार न करे
समझो लग गई है
प्रेम में फफूंद
प्रेम सूख गया
दरवाजे पर कोई आहट हो
दिल न धड़के
किसी के आने का
इंतज़ार न हो
समझो प्रेम के बीज पे
तेज़ाब पड़ गया
प्रेम सूख गया
दिखने लगे एक दूजे के ऐब
होने लगे शिकायते
समझो प्रेम का पेड़
मुरझा रहा है
2 Comments:
nice one ... :) :(
very nice .... please join my blog ... https://panchopoetry.blogspot.in/
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