Tuesday, March 13, 2018

खोई हुई लड़की


न जाने कब से
अपने साथ मुलाकात ही न हुई
तुम में डूब गई अपने से
कोई बात ही न हुई
अब देखती हूँ आईना
अपना चेहरा ही
अनजान सा लगता है
नही पहचान पाती
कभी कभी खुद को
जैसे कोई वीरान सा
जंगल दिखता है
दिखती है मुझमे एक
उदास नदी
सूने पहाड़
सिसकते पेड़
और न जाने तमाम रातों से न सो पाई हो
ऐसी झील
जो गुम हो गई है
मेरे सर्द वजूद में
शायद
अब मुझे मेरे जानने वाले भी नही पहचानते
क्योंकि वो मुझमे तलाशते है वो पुरानी
हसीं मजाक करती
खुशनुमा लड़की
जो दफन हो  गई है
तुम्हारी यादों के साथ
तुम्हारी ही कब्र में
जो कभी कब्र से बाहर नही निकलती
भले ही
दम घुटता रहे उसका
ठंडी मिट्टी में
उस अनजान लड़की को
सब आज भी तलाश रहे है
लेकिन वो तो ग़ुम है
कहीं तुम्हारे साथ
तुम्हारी ही बेदर्द यादों में
वो कहती है
उसे याद ही नही
वो सब
जो आज तुम शिनाख्त कर सको
कहीं वो खोई खिलखिलाती, मासूम लड़की तो नही

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