तुम्हारी कविता
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तुम्हारी कविता को
तुमसे
प्रेम हो गया है
चूमती है वो
तुमको
कभी इठलाती है
इतरा कर
अपने आपको
कुछ विशेष
मानती है
इस से कहो
कभी मेरे घर भी आये
ठंडा पानी
मिठाई खाकर
मुझसे भी कुछ
इश्क़ फरमाए
मै यू ही उसे
सूखने न दूंगी
प्रेम की चाशनी में
पाग कर
उसे और मीठा
लज्जतदार कर दूंगी
बस जरा वो
नजदीक तो आये
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